लाल मिर्च भारत के व्यंजनों को ज्वाला देती हैं।
मधुर जाफरी
जब हम मिर्च की बात करते हैं तो सबसे पहला ख्याल यही आता है कि यह कितनी तीखी होगी ? मिर्च के तीखेपन को स्कोविल हीट यूनिट (SHU) द्वारा मापा जाता है। स्कोविल हीट यूनिट (SHU) खाद्य पदार्थों के तीखेपन को मापते हैं। कैरोलिना रीपर को 2,200,000 SHU के साथ दुनिया की सबसे तीखी मिर्च माना जाता है। आइए नजर डालते हैं कुछ प्रसिद्ध भारतीय मिर्चियों पर।
स्कोविल स्केल कैप्साइसिन की मौजूदगी को मापता है, जो कि मिर्च के तीखेपन के लिए जिम्मेदार रसायन है। Capsaicin मुंह और गले में मिर्ची के स्वाद को पैदा करता हैं , जिससे जलन होती है। कैप्साइसिन की मौजूदगी जितनी अधिक होगी, स्कोविल रेटिंग उतनी ही अधिक होगी और भोजन उतना ही तीखा होगा।
कश्मीरी मिर्च
कश्मीरी मिर्च अपने जीवंत लाल रंग और हलके तीखेपन के लिए जानी जाती हैं। इसका इस्तेमाल तंदूरी चिकन और बिरयानी जैसे व्यंजनों में किया जाता है जहां रंग महत्वपूर्ण होता है। यह 100-2000 के SHU स्तर के साथ बहुत हल्की तीखी होती हैं ।
गुंटूर मिर्च
गुंटूर मिर्च की उत्पत्ति आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले से हुई है। इसका SHU स्तर 30,000-40,000 रहता है है। गुंटूर मिर्च, सबसे तीखी किस्मों में से एक है और आमतौर पर आंध्र प्रदेश के व्यंजनों में उपयोग की जाती है।
ब्याडगी मिर्च
यह एक और अत्यधिक लोकप्रिय लाल मिर्च है। बयाडगी मिर्च अपने गहरे लाल रंग और मध्यम गर्मी के लिए जानी जाती है, जिसके कारण वे सांबर और रसम जैसे दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इस्तेमाल होती हैं। ब्याडगी मिर्च उडुपी व्यंजनों का अभिन्न अंग है। इसका 8,000-15,000 SHU स्तर रहता है। इसकी खेती मुख्य रूप से कर्नाटक में की जाती है।
नागा और भुत जोलोकिया
SHU स्तर 1 मिलियन के साथ, यह मिर्च गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में काफी समय तक शीर्ष में रही । स्थानीय लोग इस तीखी मिर्च का इस्तेमाल खेतों से जंगली हाथियों को डराने के लिए भी करते हैं।
इन मिर्चियों के अलावा भी लाल मिर्च की कई अन्य किस्में हैं जो भारत में पाई जाती हैं।
भारत में लाल मिर्च का न केवल खाना पकाने में उपयोग किया जाता है बल्कि इसका सांस्कृतिक और औषधीय महत्व भी है। माना जाता है कि आयुर्वेद में, लाल मिर्च के विभिन्न स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जिनमें पाचन में सुधार, सूजन को कम करना और पाचन शक्ति को बढ़ाना शामिल है। गठिया, सांस की समस्याओं और सिरदर्द सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए उनका उपयोग पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में भी किया जाता है।
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