कठपुतली पारंपरिक भारतीय कला है जो कई सदियों पुरानी है। यह लकड़ी और कपड़े से बनी कठपुतलियों के माध्यम से कहानी कहने का एक रूप है। "कठपुतली" शब्द हिंदी के दो शब्दों काठ और पुतली से बना है। काठ का अर्थ है "लकड़ी" और पुतली का अर्थ है "गुड़िया"। इस कला रूप का सर्जन राजस्थान में हुआ और तब से दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित भारत के अन्य हिस्सों में फैल गया।
कठपुतलियों के पीछे की एक कहानी यह है कि बहुत समय पहले, एक राजा ने अपने राज्य के सभी खिलौनों को जलाने का आदेश दिया। इसमें घुमक्कड़ कलाकारों के समूह की प्रिय कठपुतलियाँ भी शामिल थीं। इन कलाकारों ने वापस टहनियों और कपड़े से नई कठपुतलियाँ बनाईं और उन्हें अपनी कल्पना और संगीत से जीवंत किया। राजा नई कठपुतलियों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कलाकारों को रहने खाने और अपने दरबार में प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया।
तब से, कठपुतलियाँ मनोरंजन के लिए एक लोकप्रिय कला बन गयी। इसे कलाकारों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में संजो कर रखा गया है । कठपुतलियों का जादू कलाकारों के संगीत और कल्पना द्वारा जीवंत किए जाने के तरीके में निहित है, जो अपनी कला के द्वारा जीवन के विभिन्न रसों कहानियों के द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
एक अन्य लोककथा एक जादुई कठपुतली के इर्द-गिर्द है जिसमे एक लकड़ी का गुड्डा जीवित हो जाता है । वह एक प्रसिद्ध कलाकार बन जाता है और अंततः उसे एक मानव लड़की से प्रेम हो जाता है। मगर कठपुतली को अंततः अपने लकड़ी के रूप में वापस आना होता है और उसे अपनी प्रेमिका से बिछुड़ना होगा ।
इस दौरान कठपुतली को मानव दुनिया की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन लोगों से निपटना पड़ता है जो अपने स्वयं के लाभ के लिए उसके जादू का उपयोग करना चाहते हैं। अंत में, कठपुतली गुड्डा अपने लकड़ी के रूप में लौटने का फैसला करता है। इसके लिए उसे अपने मानव जीवन और लड़की के प्यार दोनों का बलिदान करना पड़ता है। इस कहानी का निचोड़ एक सन्देश है जो बताता है की कितना जरूरी होता है स्वयं की खोज करना और अपनी आत्मा को समझना और जीवन में प्रेम का महत्व।
कठपुतली का उल्लेख भगवद गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है।
ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ||
ईश्वर सभी प्राणियों के दिलों में मौजूद है और उनके कार्यों को निर्देशित करता है, जैसे की कठपुतलियों को नियंत्रित किया जाता है।
कठपुतलियों का निर्माण अक्सर हलके वजन वाली लकड़ियों से किया जाता है। उन्हें फिर चमकीले रंगों से सजाया जाता है । उन्हें चमकीले पारंपरिक भारतीय पोशाक पहनाये जाते हैं। कठपुतली कलाकार उनके अंगों और सिर से तारों का जोड़ कर उन्हें नियंत्रित करते हैं।
कठपुतलियों के द्वारा अक्सर भारतीय लोककथाओं, मिथकों और किंवदंतियों की कहानियां को बताया जाता है । प्रदर्शन आमतौर पर संगीत, गायन और संवादों के साथ होते हैं। कठपुतलियों को नियंत्रित करने का काम पुरुष और महिला दोनों करते हैं। पीढ़ी से पीढ़ी यह कला विरासत में चली आ रही है।
अपने लंबे इतिहास के बावजूद कठपुतली कला आज चुनौतियों का सामना कर रही है। मनोरंजन के इलेक्ट्रॉनिक रूपों की बढ़ती उपलब्धता के कारण, पारंपरिक कला रूप विशेष रूप से युवा पीढ़ियों के बीच लोकप्रियता खो रही है। इसके अतिरिक्त, कई कुशल कठपुतली निर्माताओं और कलाकारों ने उचित मेहनताना न होने की वजह से इसका प्रदर्शन बंद कर दिया। कई कलाकारों के बच्चों ने अन्य व्यवसाय को अपना लिया।
कठपुतली के पारंपरिक कला रूप को पुनर्जीवित करने और संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कठपुतली कलाकारों को प्रशिक्षित करने और उनका समर्थन करने और नए दर्शकों के लिए कला के रूप को बढ़ावा देने के लिए कई संगठन भी काम कर रहे हैं।
कठपुतली एक अनूठी और आकर्षक कला है जो सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। यह कहानी कहने का एक रूप है जो न केवल मनोरंजक है बल्कि इतिहास और सांस्कृतिक महत्व से भी समृद्ध है। इस पारंपरिक कला रूप को संरक्षित करने और यह सुनिश्चित करने के प्रयास चल रहे हैं कि आने वाली पीढ़ियां इसकी सुंदरता और आकर्षण को अनुभव कर सकें।
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