अगर आपको किसी से सच जानना है तो उसे एक मुखौटा दे दीजिये जिसके पीछे वह छिप सकता है।
ऑस्कर वाइल्ड
Kushmandi masks (Mukha) are brightly colored masks. The wooden mask of Kushmandi is a unique and intriguing artifact that holds a special place in the cultural heritage of the region. Kushmandi is a small town in the Dakshin Dinajpur district of West Bengal, India and from there the masks got their name. they are also known by Gomira masks and earlier they were made with beech wood tree (Gamhar). The masks is worn during the Gomira dance (Mukha Khel). The masks represent the various characters of Goddess Kali and also Lord Hanuman. These masks have received the भौगोलिक संकेत (GI) टैग (GI) Tags in handicrafts category.
कुष्मांडी का मुखौटा कुशल कारीगरों द्वारा लकड़ी के ऊपर डिज़ाइन उकेर कर बनाया जाता है । मुखौटे को अक्सर चमकीले रंगों से रंगा जाता है। मास्क आम तौर पर बड़े होते हैं और पहनने वाले के चेहरे को पूरी तरह से ढक देते हैं। उन्हें और सजाने के लिए उनपर पक्षिंयों के पंख, सीपी जैसी चीजें लगाई जाती हैं।
कुष्मांडी के का मुखौटे जनजातियों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी बनाया जा रहा है। इस हस्तशिल्प के अभी तक कोई लिखित प्रमाण नहीं मिले जिससे यह पता चले की इस इस कला की शुरुआत कैसे हुई । मुखौटों को उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और पारिवारिक समारोहों में किया जाता है । इन अनुष्ठानों का उद्देश्य देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना और बुरी आत्माओं को भगाना होता है । समय के साथ, मुखौटों का उपयोग अधिक व्यापक हो गया, और विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया।
कुष्मांडी के मुखौटे आमतौर पर 'गम्हार' की लकड़ी से बने होते हैं जो हल्की होती है। महोगनी और आम की लकड़ी का भी प्रयोग किया जाता है। लकडी को उपयुक्त बनाने के लिए उसमें उपस्थित नमी की मात्रा को कम किया जाता है, इस प्रक्रिया को लकड़ी का उपचार या संशोषण (Seasoning) कहते हैं। इसमें लकड़ी को कई बार भिगोया और सुखाया जाता है । लकड़ी को दीमक और कीट प्रतिरोधी बनाने के लिए रासायनिक उपचार किया जाता है। इसके बाद कारीगर लकड़ी के ब्लॉक पर डिजाइन तैयार करता है। अंत में मुखोटे को चमकदार रंगों से रंगा जाता है जिससे मुखोटे जीवंत हो जाते हैं।
कुष्मांडी शहर में वार्षिक बिसर्जन मेला मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, स्थानीय लोग मुखौटे पहनते हैं और सड़कों पर हर्षोउल्लास के साथ जुलुस निकलते हैं । यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। स्थानीय लोग भोजन, संगीत और नृत्य के साथ इसे मानते हैं ।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के अलावा, कुष्मांडी के लकड़ी के मुखौटे को एक अनूठी कला के रूप में भी मान्यता मिली है। जटिल डिजाइन और कुशल शिल्प कौशल से बने इन मुखौटों की काफी मांग है। संग्रहकर्ताओं के बीच भी इन मुखौटों की काफी मांग रहती है ।
हाल के वर्षों में, कुष्मांडी के लकड़ी के मुखौटे की लोकप्रियता काफी बढ़ी है, और इस अनूठी सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं । स्थानीय सरकार और सांस्कृतिक संगठनों ने इन मुखौटों को बनाने वाले कारीगरों का समर्थन करने और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और त्योहारों में मुखौटों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।
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