ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, मऊ साड़ी का इतिहास 16वीं शताब्दी में शुरू होता है । कहा जाता है कि मुगल काल के दौरान बुनाई शुरू हुई थी। इसे शाहजहाँ की सबसे बड़ी बेटी जहाँआरा बेगम ने काफी प्रोत्साहन दिया था।
Pichwai paintings are a celebration of Krishna and his many moods.
डॉ. अलका पांडे
इतिहासकार और संग्रहाध्यक्ष (Curator)
पिछवाई चित्रकला का एक पारंपरिक रूप है जिसकी उत्पत्ति भारत के राजस्थान के नाथद्वारा शहर में हुई थी। "पिछवाई" शब्द हिंदी भाषा से आया है और "पिछ" (पीछे) और "वाई" (लटका हुआ) शब्दों से बना है। "पिछ" और "वाई" मिलकर "पिछवाई" शब्द बनाते हैं। इन्हें आमतौर पर हिंदू मंदिर में मुख्य देवता के पीछे लटकाया जाता है।
पिछवाई पेंटिंग आमतौर पर बड़े साइज़ में होती हैं जो भगवान कृष्ण के जीवन और किंवदंतियों को चित्रित करती हैं, विशेष रूप से उनके बचपन और किशोरावस्था को। पिछवाई कला का आज भी बहुत कम कलाकारों और कारीगरों द्वारा अभ्यास किया जाता है, विशेष रूप से राजस्थान के नाथद्वारा शहर में। इनमें से कई कलाकार पिछवाई पेंटिंग बनाने की लंबी परंपरा वाले परिवारों से आते हैं और छोटी उम्र से ही वह इस कला में प्रशिक्षित हो जाते हैं।
पिछवाई कला में उपयोग की जाने वाली तकनीक काफी जटिल होती है और इसके लिए बहुत अभ्यास और धैर्य की आवश्यकता होती है। पेंटिंग आमतौर पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके कपड़े या कागज पर बनाई जाती हैं, और अक्सर जटिल विवरण और जीवंत रंगों से भरी होती हैं। पिछवाई पेंटिंग में सोने और चांदी की पन्नियों का भी उपयोग किया जाता है। इससे पेंटिंग में गहराई आती है और इसकी सुंदरता काफी बढ़ जाती है।
पिछवाई कला में जो थीम अक्सर चित्रित किये जाते हैं -
चित्रों को मूल रूप से नाथद्वारा में मंदिरों की दीवारों को सजाने के लिए बनाया गया था। लेकिन वर्तमान में, पिछवाई पेंटिंग्स को काफी नाम मिला है और दुनिया भर की कई कला दीर्घाओं और संग्रहालयों में इन्हें देखा जा सकता है। वे अपनी सुंदरता, सांस्कृतिक महत्व और कलाकार के कौशल और कलात्मकता के लिए जाने जाते हैं।
पारंपरिक पिछवाई कलाकारों के अलावा, आजकल समकालीन कलाकार भी हैं जो पिछवाई कला के तत्वों को अपने काम में शामिल कर रहे हैं। ये कलाकार अपने चित्रों में पिछवाई तकनीकों और रूपांकनों का प्रयोग करते हैं, और उन्हें नए तरीकों से इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं ।
पिछवाई कला ने दुनिया भर के कलेक्टरों और कला के प्रति उत्साही लोगों के बीच भी लोकप्रियता हासिल की है, और कई गैलरी और ऑनलाइन मार्केटप्लेस हैं जहां पिछवाई पेंटिंग खरीदी जा सकती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक कला के रूप में, पिछवाई कला अक्सर प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके हाथ से बनाई जाती है, और बड़े पैमाने पर आधुनिक तकनीक से उत्पादित कलाकृति की तुलना में अपेक्षाकृत महंगी हो सकती है।
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ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, मऊ साड़ी का इतिहास 16वीं शताब्दी में शुरू होता है । कहा जाता है कि मुगल काल के दौरान बुनाई शुरू हुई थी। इसे शाहजहाँ की सबसे बड़ी बेटी जहाँआरा बेगम ने काफी प्रोत्साहन दिया था।
Artificial intelligence (AI) is transforming industries at an unprecedented pace. From healthcare breakthroughs to financial forecasting, AI’s impact is undeniable. But what about the realm of art, traditionally seen as a domain of human emotion and intuition? Believe it or not, AI is creating a new artistic renaissance, offering exciting new avenues for creativity and expression.
कुष्मांडी का मुखौटा कुशल कारीगरों द्वारा लकड़ी के ऊपर डिज़ाइन उकेर कर बनाया जाता है । मुखौटे को अक्सर चमकीले रंगों से रंगा जाता है। मास्क आम तौर पर बड़े होते हैं और पहनने वाले के चेहरे को पूरी तरह से ढक देते हैं। उन्हें और सजाने के लिए उनपर पक्षिंयों के पंख, सीपी जैसी चीजें लगाई जाती हैं।