ढोकरा शिल्प कला

ढोकरा मशीनी युग के बड़े पैमाने के उत्पादन के समक्ष हस्तशिल्प के कौशल को संजोये हुए है।

Lalit Bhatt
ललित भट्ट

ढोकरा एक पारम्परिक खोई हुई मोम धातु कास्टिंग द्वारा मध्य भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में स्थित बस्तर की जनजातियों का हस्तशिल्प है । गढ़वा समुदाय द्वारा कला का अभ्यास किया जाता है इसलिए इसे गढ़वा कला के रूप में भी जाना जाता है। गहड़वा का शाब्दिक अर्थ है गलना जिसका अर्थ है पिघलना। मोहनजोदड़ो की नर्तकी (Dancing Girl) खोई हुई मोम धातु कास्टिंग का एक बेहतरीन उदहारण है। इसे मोहनजोदड़ो से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था।

Dhokra art - Mother with Five children
माँ और पांच बच्चे

खोई हुई मोम धातु कास्टिंग में वस्तु का एक मोम मॉडल बनाया जाता है और उसके ऊपर मिट्टी का लेप लगाया जाता है। इसके बाद इसे तब तक गर्म किया जाता है जब तक कि मोम पिघल कर बह न जाए। इससे एक मोल्ड तैयार होता है जो अंदर से खोखला होता है, जिसमें पिघली हुई धातु को भरा जाता है । इस तकनीक के परिणामस्वरूप सुन्दर और महीन काम वाली धातु की मूर्तियां बनायीं जाती हैं। इसमें इस्तेमाल किये जाने वाली धातु हैं कांस्य, पीतल, निकल और जस्ता के मिश्र धातु (allloy)।

बस्तर के कारीगर स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्री जैसे मोम, मिट्टी और धातु का उपयोग करते हैं। इस शिल्प को पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में आगे ले जाया जा रहा है । इस तकनीक के माध्यम से बनाई गई वस्तुओं मेंउपयोग की वस्तुएं जैसे खाना पकाने के बर्तन, संगीत वाद्ययंत्र और गहने से लेकर सजावटी मूर्तियां और भगवान की मूर्तियां शामिल हैं।

बस्तर ढोकरा की सबसे आकर्षक विशेषताओं में से एक यह है की हर शिल्प अपने में केवल एक और अनूठा होता है । कोई भी तो मूर्तियाँ एक जैसी नहीं होती हैं। यह एक कलाकार के हस्तनिर्मित चित्र की तरह है।

बस्तर ढोकरा की परंपरा बस्तर के आदिवासी लोगों की संस्कृति और दिनचर्या का हिस्सा है । यह शिल्प न केवल कारीगरों के लिए आजीविका का एक स्रोत है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक साधन भी है।

हाल के दिनों में, बस्तर ढोकरा की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता बढ़ी है, जिसमें कई संगठन और व्यक्ति विलुप्त हो रही कला को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, बस्तर ढोकरा एक लुप्तप्राय शिल्प बना हुआ है, जिसमें कारीगरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें कच्चे माल, पारंपरिक उपकरण और तकनीक और बाजार के अवसरों तक पहुंच की कमी शामिल है।

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