ऐपण कुमाऊंनी परंपराओं और रीति-रिवाजों की कहानी है।
कहा जाता है की देवी पार्वती ने सबसे पहले अपने घर को सजाने और देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ऐपण की कल्पना की थी।
कहा जाता है की देवी पार्वती ऐपण की कला में इतनी कुशल थीं कि उनकी बनायीं रचना जीवित हो जाती थीं और उससे उनके सौभाग्य और समृद्धि बढ़ जाती थी। देवी पार्वती ने अपने पति, भगवान शिव को भी ऐपण की कला सिखाई। ऐपण बनाने की परंपरा कुमाऊँनी परिवारों में पीढ़ियों से चली आ रही है।
इतिहासविदों के अनुसार ऐपण की उत्पत्ति चंद वंश के शासन के दौरान अल्मोड़ा में मानी जाती है।
समय के साथ, ऐपण कुमाऊँनी संस्कृति का एक अटूट हिस्सा बन गई , और इसका उपयोग घरों और विभिन्न जगहों को त्योहारों और महत्वपूर्ण अवसरों में सजाने के लिए होने लगा । धार्मिक समारोहों और त्योहारों के दौरान देवताओं की पूजा, पारिवारिक समारोहों जैसे शादियां इसमें शामिल लोगों के लिए सौभाग्य और समृद्धि की अकांक्षा हेतु ऐपण से सजावट की जाती है । कहते हैं इससे बुरी आत्माओं दूर भागती हैं।
ऐपण बनाने में मुखयतः चावल के आटे का प्रयोग होता है। स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से बने प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जाता है । गेरू रंग से रंगी ईंट की दीवारों या फर्श पर पर ऐपण बनाया जाता है ।
ऐपण के डिज़ाइन ज्यामितीय (Geometric), फुलकारी (floral) और आलंकारिक (figurative) होते हैं, और इनमें अक्सर एक प्रतीकात्मक अर्थ निहित होता है। उदाहरण के लिए, स्वस्तिक को आमतौर पर सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसी तरह कमल का फूल पवित्रता का प्रतीक है, जबकि शंख शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
ऐपण के विभिन्न लोकप्रिय रूप हैं:
इसके अलावा भी ऐपण के और भी डिज़ाइन हैं जिन्हें त्योहारों और अन्य देवी देवताओं की पूजा में बनाया जाता है।
ऐपण के बारे में सबसे दिलचस्प बातों में से एक यह है कि यह न केवल एक कला का रूप है, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना भी है। ऐपण बनाने की प्रक्रिया में गहन ध्यान की जरूरत होती है, और कहा जाता है कि यह मन और शरीर में शांति और संतुलन लाती है। दोहराए जाने वाले पैटर्न और जटिल डिजाइन बनाने के लिए कलाकार को शांत मन से ऐपण को आकार देना होता है ।
हाल के वर्षों में, ऐपण को कुमाऊँ क्षेत्र के बाहर भी लोकप्रियता और पहचान मिली है, और अब इसे भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ऐपण में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक डिजाइनों को डिजिटाइज करने के प्रयासों भी किये जा रहे हैं। भारत सरकार ने इस कला को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए हैं।
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